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कविता

भागीरथ-सम्मान

वीरेंद्र आस्तिक


शिल्पी हैं वे
लंबे कद को
छोटा करने के।

शब्द-यज्ञ की
चौखट-चौखट
चाकरी बजाते हैं
नीलम के सम्मुख
पाथर को
बहुमूल्य बताते हैं

ख्यातिलब्ध हैं
इतिहासों में
क्षेपक गढ़ने के।

बड़े बड़े शब्दों के
दुखते
कर-पाद दबाते हैं
वैतरणी में
पूरे कुनबे से
पाप धुलाते हैं

गुर आते हैं
भागीरथ-सम्मान
झटकने के।


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